आवारा हूँ,
अनजान रास्तो पर,
पहचान की तलाश में,
नादान मैं बढ़ा जा रहा हूँ।
न कोई मंज़िल है,
न ही कोई बसेरा।
कुछ अजीब ख़्वाबो के तराने,
यूँही गुनगुनाता जा रहा हूँ।
सफ़र से अब दोस्ती सी हो गयी,
रास्ते अब अपने से हो गए।
रोज़ अपने सफरनामे में,
एक नयी कहानी लिखता जा रहा हूँ।
आवारा हूँ।
वाह वाह
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद
LikeLiked by 1 person
Beautifully pen down, I enjoyed reading ur work they are telling a whole story in brief ..
LikeLiked by 1 person
Thanks…that means a lot🙂
LikeLiked by 1 person